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गया का ‘पटवा टोली’ कैसे बना IIT का कारखाना…दिलचस्प है कहानी

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पटना Live डेस्क। यह कहानी है क्राइसिस से सक्सेस तक की। कहते हैं कि वक्त के साथ ही आपके विचार भी बदल जाते हैं। शायद यही लागू होता है गया के पटवा टोली पर। बिहार के गया जिले का पटवा टोली गांव अब ‘IIT हब’ बनकर उभरा है। लेकिन कैसे ये जानना दिलचस्प है..

बीते रविवार को IIT इंट्रेंस के रिजल्ट में तमाम सुविधाओं से महरूम इस गांव के एक-दो नहीं, बल्कि एक बार फिर 15 छात्रों ने कामयाबी पाई है। एक गांव से इतने स्टूडेंट का एक साथ IIT में सफल होना सुखद हैरानी पैदा करता है।

पटवा टोली की पहचान 1990 के पहले तक पॉवरलूम उद्योग के तर्ज पर थी…लेकिन बिजली के संकट ने वर्षो पुराने कारोबार पर ताला लटका दिया…नई पीढ़ी के पास समस्या थी कि अब किया क्या जाए..इसी सवाल के जवाब ने उस रास्ते को खोज दिया जिस पर चलते हुए इस कस्बा के कम से कम 300 बच्चे अब तक आईआईटी और अन्य प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेज का सफर तय कर चुके हैं।

आज पढ़ाई के प्रति यहां के बच्चों के जज्बा क्या है इसे इसी बात से समझा जा सकता है कि …हर साल आईआईटी के रिजल्ट आने के बाद , इन गांव वालों के लिए यही चुनौती बन जाती है कि वे अगले साल इससे बेहतर परिणाम दिखाएं। दरअसल, हाल के वर्षों में गांव के अंदर ही लोगों ने ऐसा सिस्टम बनाया है, जिससे गांव के छात्र न सिर्फ IIT, बल्कि दूसरे इंजिनियरिंग कॉलेजों में भी जगह बनाने में कामयाब हो रहे हैं।



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साल में 300 का रेकॉर्ड 
92 में एक बुनकर के बेटे जितेंद्र सिंह ने IIT में सफलता पाई। IIT मुंबई में दाखिला मिला। जितेंद्र अपने गांव का रोल मॉडल बने। सभी जितेंद्र जैसा बनने की चाहत रखने लगे। और यहीं से शुरू हुई साल-दर-साल गांव के बच्चों के IIT में कामयाब होने की कहानी। जो इस साल भी बदस्तूर जारी रही। अब तक पटवा टोली के 300 से ज्यादा बच्चों ने IIT में सफलता पाई है और इनमें कई दुनिया के अलग-अलग देशों की बड़ी कंपनियों में बड़े पदों पर काम भी कर रहे हैं। वे अपने गांव के बच्चों को स्टडी मटीरियल से लेकर हर तरह के संसाधन तो उपलब्ध कराते ही हैं, उन्हें टिप्स भी देते हैं।

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