बेधड़क ...बेलाग....बेबाक

मोतिहारी: हाय रे भ्रष्टाचार! मजबूरों को भी नहीं बख्शा, बाढ़ पीड़ितों को सरकार ने कहा 100 ग्राम हल्दी दो,मिल रहा 12 ग्राम,बीच के 90 ग्राम खा गए भ्रष्टाचारी

215

कुबेर पाण्डेय “अभिनंदन”/मोतिहारी/पूर्वी चम्पारण

पटना Live डेस्क. लोग मर रहे हैं..मवेशी मर रहे हैं..किसी के घर का सामान इस बाढ़ के चलते बर्बाद हो गया..साल भर राशन यह बाढ़ बहा कर ले गयी…कोई अपना घर बार छोड़कर उंची जगहों पर शरण लिए हुए है..तो कोई बांध पर सोया हुआ है..कोशिश है किसी तरह जिंदगी बच जाए..सरकार थोड़े बहुत लोगों को राहत पहुंचा रही है..खाने का इंतजाम कर रही है..उनकी जिंदगी पटरी पर कैसे लायी जाए इसकी कोशिश कर रही है..लेकिन जिसके उपर इन बाढ़ पीड़ितों को राहत पहुंचाने की जिम्मेदारी उनकी तो इंसानियत मर चुकी है..दिल पत्थरों जैसा कठोर हो चुका है…कोई मरे..कोई भूखा रहे..उनको इससे कोई मतलब नहीं…उन्हें तो इस भयंकर प्राकृतिक आपदा में भी अपना फायदा दिख रहा है..क्या यही है मानवीय संवेदना..क्या यही है दुख की घड़ी में साथ निभाने की भारतीय परंपरा..हाय रे इंसानियत..हाय रे भ्रष्टाचार..जिसका कीड़ा मानो लगता है हरेक के खून में मिल चुका है..लगता है  भ्रष्टाचार किए बिना वो जी ही नहीं पाएंगे…हम ऐसा क्यूं कह रहे हैं अब जरा इस बात को भी जान लीजिए…पूर्वी चंपारण के सुगौली और चिरैया का पूरा इलाका भयंकर बाढ़ की चपेट में है..लोगों को रहने..खाने का कोई ठिकाना नहीं है..सरकार इन आपदा पीड़ितों के लिए राहत कार्य चला रही है..बड़े पैमाने पर लोगों को राहत पैकेट बांटे जा रहे हैं..लेकिन राहत बांटने वाले ही यहां बाढ़ पीड़ितों के साथ भंयकर घपला कर रहे हैं..सरकार की तरफ से यह निर्देश है कि खाने की पैकेट में दी जाने वाली हल्दी की मात्रा सौ ग्राम होनी चाहिए..लेकिन जो पैकेट लोगों को दिए जा रहे हैं उसमें हल्दी की सौ ग्राम मात्रा की जगह महज बारह ग्राम है..ऐसा पिछले कई दिनों से चल रहा है..इस बात की किसी को जानकारी नहीं है..आप अंदाजा लगा लीजिए..अगर हजार पैकेट भी बांटे गए तो भ्रष्टाचारियों को कितना फायदा हुआ होगा..लेकिन कहते हैं ना कि भ्रष्टाचार की चादर ज्यादा लंबी नहीं होती..बस क्या था जिलाधिकारी रमण कुमार ने बाढ़ राहत के नाम पर चल रहे शिविर का औचक निरीक्षण किया..डीएम को जब इस बात की जानकारी चली तो उनके पैरों को नीचे जमीन खिसक गयी…हैरान-परेशान डीएम यह सोचने पर मजबूर हो गए कि आखिर इस भयंकर आपदा की घड़ी में भी लोग इस स्तर पर कैसे उतर सकता है…इस शिविर में आपदा पीड़ितों को सौ ग्राम हल्दी की जगह महज बारह ग्राम हल्दी पैक कर दिया जा रहा था..बारह ग्राम पैकेट की कीमत पांच रुपए है जबकि पचास ग्राम पैकेट की कीमत चौदह रुपया है..इस हिसाब से अगर सिर्फ हल्दी के मार्जिन मनी का हिसाब लगाया जाए तो वो लाखों में पहुंचता है…जबकि राहत पंजी उलट कर देखें तो उसमें साफ तौर पर सौ ग्राम हल्दी देने की बात अंकित है…जिलाधिकारी के निरीक्षण के बाद अधिकारियों के होश उड़े हुए हैं..जाहिर है अब जांच होगी और डीएम के रुख को देख यह निश्चित है कि इस मसले पर कार्रवाई जरुर होगी..यह सरकार भी चाहेगी..आम आदमी भी चाहेगा…और बाढ़ पीड़ित भी चाहेंगे..

 

 

Comments are closed.