बेधड़क ...बेलाग....बेबाक

समर्थकों ने पूछा भगवान ने किस बात की कमी दी थी?

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शुक्रवार सुबह के सात बजे का वक्त. सीबीआई लालू प्रसाद के आवास पर छापा मारती है. ये खबर जंगल में आग की तरह फैलती है. अपने नेता के घर छापेमारी की बात सुनकर एकबारगी तो समर्थकों को भरोसा नहीं होता. लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता है उऩ्हें हकीकत का पता चलता है.बड़े ही मायूस होकर वो मन ही मन मनाते हैं कि कुछ भी सीबीआई के हाथ नहीं लगे और जल्द से जल्द छापेमारी की कार्रवाई खत्म हो जाए. करीब तीन घंटे बाद समर्थकों को जब ये खबर मिलती है कि डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव से सीबीआई की टीम बंद कमरे में पूछताछ कर रही है तो उनका सब्र का बांध टूट जाता है. वो अपने नेता के आवास की तरफ लपकते हैं. लेकिन जैसे ही वो आवास के आस-पास पहुंचते हैं तो भारी सुरक्षा घेरा उन्हें आगे बढ़ने नहीं देता है. पुलिस की भारी तादाद और बैरिकेंडिंग उन्हें आगे बढ़ने से रोक देती है.मन ही मन वो पहले नरेंद्र मोदी और फिर सीबीआई को कोसते हैं और कहते हैं कि केंद्र के इशारे पर ही ये कार्रवाई हो रही है. कुछ समर्थक तो बुदबुदाते हुए वापस लौट जाते हैं लेकिन कुछ को आस है कि उऩ्हें आगे जाने को रास्ता मिलेगा. यही सोचकर कुछ लोग सड़क के किनारे पेड़ की छाया में बैठ जाते हैं. फिर शुरु होता है राजनीतिक सोच और विश्लेषणों का दौर. कुछ कहते हैं आरजेडी को लालू के बाद एक युवा उत्तराधिकारी मिला था,मेहनती और स्मार्ट. पार्टी के सिद्धांत और विचारधारा और प्रतिबद्धता नहीं होने के बाद भी समर्थकों को तेजस्वी अच्छे लगने लगे थे. कुछ कहते हैं कि सफेद कुर्ता पायजामा और बोलने की सलाहियत ने उनको तेजस्वी यादव का दीवाना बना दिया. सबकुछ तो ठीक ठाक ही चल रहा था कि कुछ समर्थक बीच में ही बोल उठते हैं कि पता चला कि तेजस्वी का यहां मॉल बन रहा है, तो यहां जमीन है, बिल्डिंग है तो वो उऩके पास एक कंपनी भी है जिसके वो डायरेक्टर हैं और उऩका अपना बिजनेस भी है. पेड़ के नीचे छांव में कुछ बेहतर खबर की आस में बैठे कुछ समर्थक बोलतेहैं कि इसमें बुरा क्या है? लेकिन बहुत सारे समर्थकों को तेजस्वी की हकीकत अच्छी नहीं लग रही थी.

पेड़ के नीचे जुटी भीड़ पिछले दो महीनों के राजनीतिकत घटनाक्रम के बारे में सबकुछ जानना चाह रही थी और राजनीति के तमाम पहलुओं का विश्लेषण कर रही थी. इसी बीच किसी ने कहा इस छापे के बाद तेजस्वी का तेज चला जाएगा. कुछ ने सवालिया लहजे में पूछा जमीन को लेकर इनती जल्दी और छटपटाहट क्या थी? भगवान ने किस चीज की कमी दी है? कंपनियां बनाईं गईं, शेयर घटाए-बढ़ाए. सब झूठ थोड़े ही होगा? जब तय था कि बिहार की सेवा करनी है तो वहीं करते. कमी किस बात की थी. ये सुन सामने बैठे लोग सहमति में सिर हिलाते हैं.

इसी विश्लेषणों के बीच उसी पेड़ के नीचे बैठा युवक फेसबुक पर तेजस्वी की पुरानी तस्वीर देख रहा था. चर्चा के दौरान ही वो तस्वीर दिखाने लगा और बोलने लगा कि अपने नेता तेजस्वी की पुरानी तस्वीर देखिए. नीतश कुमार के बगल में बैठे हैं. कितने सुंदर लगते हैं. बिल्कुल नीतीश जैसे. साफ-सुथरे गंभीर. राजद वाली स्टाइल से अलग नेता. पार्टी को भी नई ऊंचाई दे रहे थे,लेकिन सब गड़बड़ा रहा है.

इसी समर्थकों की भीड़ में गांव से आए एक बुजुर्ग से समर्थक बार-बार आसमान की ओर निहार रहे हैं और कहते हैं कि बारिश हो तो धान की फसल अच्छी हो जाए. जो होनी है वो तो होकर रहेगा. इसी बीच वो समझने की भी कोशिश कर रहे थे कि आखिर सीबीआई वाले आवास के अंदर क्या कर रहे हैं? काफी सुनने के बाद आखिरकार वो भी बहस में शामिल हो गए और कहने लगे की लालूजी वाला स्टाइल अब नहीं चलने वाला. तेजस्वी को नीतीश जी से राजनीति सीखनी चाहिए थी, उनकी बातों को ध्यान रखना चाहिए था. बुजुर्ग समर्थक बोलते हैं कि सुने नहीं हैं कि नीतीशजी क्या बोलते हैं,ज्यादा पैसा कमा लेने से कोई हीरा-मोती नहीं खा लेता है.लोग इतना पैसा लेकर कहां जाएंगे.कफन में जेब नहीं होती. आखिर कहां ले जाएंगे.

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